स्वतंत्रता के बाद संयुक्त प्रान्त (उत्तर प्रदेश) में पंचायतों के लिए 'उ. प्र. पंचायती राज अधिनियम, 1947' पास किया गया और 15 अगस्त, 1947 से पंचायतों की स्थापना शुरू हो गयी। 1955 में पंचायत अदालतों का नाम 'न्याय पंचायत ' कर दिया गया। 1961-62 में 'उत्तर प्रदेश क्षेत्र समिति एवं जिला परिषद अधिनियम, 1961 पारित कर त्रिस्तरीय (ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत और जिला परिषद ) प्रणाली लागू की गयी। ऐसा बलवंत राय मेहता समिति के सिफारिशों के आधार पर किया गया था।
1992 में केंद्र सरकार द्वारा पंचायतों में एकरूपता लाने, समय पर चुनाव सुनिश्चित करने, आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने तथा पंचायतों को संवैधानिक दर्जा देने के उद्देश्य से संविधान में 73वाँ संशोधन करके अध्याय 9 को जोड़ा गया और अनुच्छेद 243A -243O तक इनसे संबंधित विभिन्न व्यव्यस्थाएं दी गयीं।
73वें संविधान संशोधन के अनुक्रम में उत्तर प्रदेश पंचायत विधि संशोधन विधेयक 1994 पारित किया गया जो 22 अप्रैल 1994 से प्रदेश में प्रवृत्त हुआ जिसमें संयुक्त प्रांत पंचायत राज अधिनियम 1947 तथा उत्तर प्रदेश क्षेत्र समिति तथा जिला परिषद अधिनियम 1961 में संशोधन संशोधन कर राज में तीनों असर की पंचायतों में एकरूपता लाने का प्रयास किया गया और साथ ही साथ पंचायतों के संगठन संरचना SC, ST, OBC एवं महिला आरक्षण निश्चित कार्यकाल निर्वाचन एवं वित्त आयोग की स्थापना पंचायतों के खेत शक्तियों और उत्तरदायित्व आदि के संबंध में व्यवहार व्यापक व्यवस्था दी गई।
जिला पंचायत:
त्रिस्तरीय व्यवस्था में सबसे शीश पर जिला पंचायत होता है रिंग के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का चुनाव जिला पंचायत के सदस्यों द्वारा किया जाता है और उनके विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव चुने जाने से 1 वर्ष के भीतर नहीं लाया जा सकता है जिला पंचायत के सदस्यों का चुनाव खेत की व्यस्त जनता द्वारा किया जाता है जिला पंचायत का सचिव जिले का मुख्य विकास अधिकारी पंचायती राज अधिकारी होता है। जिला पंचायत अपने सदस्यों में से छह प्रकार की समस्या बनाती हैं जो इस प्रकार है- प्रशासनिक समिति नियोजन एवं विकास समिति शिक्षा समिति निर्माण कार्य समिति स्वास्थ्य एवं कल्याण समिति तथा जल प्रबंध समिति
क्षेत्र पंचायत:
त्रिस्तरीय व्यवस्था में द्वितीय स्तर पर चेक पंचायत होता है प्रत्येक क्षेत्र पंचायत में एक प्रमुख तथा एक उप प्रमुख होता है। प्रमुख का चुनाव ग्राम सभा द्वारा चुने गए क्षेत्र पंचायत के सदस्यों द्वारा होता है क्षेत्र पंचायत प्रमुखों के विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव के नहीं जाने से 1 वर्ष के भीतर नहीं लाया जा सकता है।bक्षेत्र पंचायत जिला पंचायत एवं ग्राम पंचायत के बीच कड़ी के रूप में कार्य करती है इस पंचायत का सचिव बीडी होता है।
ग्राम पंचायत
सबसे निचले स्तर पर ग्राम पंचायत होती है ग्राम पंचायत के अध्यक्ष प्रधान होता है इसका चुनाव ग्राम सभा के 18 वर्ष या अधिक आयु के मतदाताओं द्वारा पत्र की जाती है ग्राम पंचायत के सदस्यों का भी चुनाव प्रत्यक्ष रूप से ग्राम सभा द्वारा की जाती है कोई ग्राम ग्राम पंचायत के सदस्य प्रधान चुने जाने हेतु न्यूनतम आयु सीमा 21 वर्ष से इस पंचायत का सचिव ग्राम विकास अधिकारी होता है यहां भी 6 समितियां बनाई जाती हैं।

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